मुफ्त दाखिला देने से भाग रहे निजी स्कूल : दो साल में 60 बच्चों को ही प्रवेश


नियम व शर्तों की ले रहे आड़, सूबे में दो साल में 60 बच्चों को ही प्रवेश

लखनऊ। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में भले ही गरीब बच्चों को निजी स्कूलों की 25 फीसदी सीटों पर मुफ्त प्रवेश देने का हक दिया गया हो लेकिन न तो राज्य सरकार ही इसके प्रति गंभीर है और न ही निजी स्कूल प्रबंधन। यही कारण है कि दो साल में मात्र 60 बच्चे ही निजी स्कूलों में दाखिला पाने में सफल हो पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट का मंगलवार को दाखिले संबंधी आया आदेश कहां तक गरीब बच्चों को उनका हक दिला पाता है यह तो समय ही बताएगा।
 
शिक्षा का अधिकार अधिनियम का मकसद 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा का हक दिलाना है। सरकारी के साथ निजी स्कूलों में भी गरीब बच्चों को पढ़ाई में बराबरी का दर्जा दिलाने की व्यवस्था की गई है। सरकारी में तो बच्चे आसानी से दाखिला पा रहे हैं, लेकिन निजी स्कूलों की 25 फीसदी सीटों पर प्रवेश पाना आसान नहीं है। उप्र में नवंबर 2012 में निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को 25 फीसदी सीटों पर मुफ्त दाखिला दिलाने का शासनादेश जारी हुआ। लेकिन इसमें ऐसे नियम व शर्तें रख दी गईं कि गरीब बच्चा आसानी से प्रवेश ही न पा सके। मसलन, निजी स्कूल में वही बच्चा दाखिला पाएगा जिसके घर के आसपास सरकारी या फिर सहायता प्राप्त स्कूल नहीं होगा। सर्व शिक्षा अभियान के तहत डेढ़ किलोमीटर पर प्राथमिक और तीन किमी पर उच्च प्राथमिक स्कूल खोले गए हैं। निजी स्कूल प्रबंधन इसी नियम को हथियार बनाते हुए गरीब बच्चों को दाखिला देने से बच रहे हैं। 
 

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