पेंशन कर्मचारी का कानूनी अधिकार : हाईकोर्ट

  • 15 साल की न्यायिक लड़ाई के बाद मिला 75 वर्षीय महिला को इंसाफ 
  • पारिवारिक पेंशन के साथ तीन सप्ताह में उसका अवशेष बकाया देने का आदेश
लखनऊ : उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सरकारी कर्मचारियों को दी जाने वाली पेंशन एवं पारिवारिक पेंशन पर अहम फैसला देते हुए कहा है कि पेंशन कर्मचारी का कानूनी अधिकार है।

अदालत ने कहा कि कर्मचारी की पेंशन छोटे-मोटे कारणों को लेकर नहीं रोकी जानी चाहिए। इस टिप्पणी के साथ ही पीठ ने विधवा वृद्धा को पारिवारिक पेंशन तत्काल दिए जाने का फैसला सुनाया। पंद्रह साल तक कानूनी लड़ाई के बाद 75 वर्ष की राम प्यारी को मिला न्याय। न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह व न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार त्रिपाठी की खंडपीठ ने यह आदेश विशेष अपील को खारिज करते हुए दिये हैं।

विदित हो कि राम प्यारी देवी के पति पूर्वीदीन मोहान के एक स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। पूर्वीदीन की मृत्यु वर्ष 1999 में हो गई थी। इसके बाद विधवा ने उप शिक्षा निदेशक माध्यमिक से परिवारिक पेंशन की मांग की। रामप्यारी देवी का आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि पारिवारिक पेंशन के मामले में वर्ष 1989 में शासनादेश है। इस आदेश को रामप्यारी देवी ने एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी। एकल न्यायाधीश ने याचिका स्वीकार करते हुए वर्ष 2002 में आदेश दिया कि रामप्यारी देवी पारिवारिक पेंशन की हकदार है।

इस आदेश में शिक्षा विभाग व सरकार ने विशेष अपील दायर कर चुनौती दी। पीठ ने विशेष अपील खारिज करते हुए कहा कि कर्मचारी की विधवा पारिवारिक पेंशन की पूरी हकदार है। अदालत ने कहा कि कर्मचारी साठ वर्ष तक सेवा करता है। इसके बाद उसका विधिक अधिकार बनता है कि उसे पेंशन अथवा पारिवारिक पेंशन दी जाए। पीठ ने कहा कि रामप्यारी देवी को दो सप्ताह में आदेश से अवगत कराया जाए तथा पारिवारिक पेंशन के साथ तीन सप्ताह में उसका अवशेष बकाया सभी दिया जाए।

खबर साभार : दैनिक जागरण

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